बुधवार, 30 दिसंबर 2009

एक बीज बोयें

नदियाँ सूख रही हैं
पेड़ हो रहे हैं नंगे
आसमान की स्याही सूख रही है
और काली पर रही है हरियाली

अब चिड़ियों के लिए महफूज़ नहीं है आकाश
डरती हैं जंगलों में हिरन
पपीहे खो रहे हैं स्वर
और बनावती महक वाले फूलों से
भर हुआ है बाज़ार

इस बीच
चलो एक अच्छा काम करें हम
धरती के गर्भ में एक बीज बोयें हम
और
आकाश की छाती पर
बनायें भविष्य का इन्द्रधनुष !

चलो
एक बीज बोयें !

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर व सामयिक रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  2. सुन्दर संदेश!!


    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  3. चलो एक अच्छा काम करें हम
    धरती के गर्भ में एक बीज बोयें हम
    और
    आकाश की छाती पर
    बनायें भविष्य का इन्द्रधनुष !

    बहुत खूबसूरत विचार

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  4. बहुत सार्थक संदेश दे रही है आपकी कविता - साधुवाद स्वीकारें !

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  5. सन्देश देती सार्थक रचना ... आभार

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