शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

आग

तुम्हे सोचते हुए 
मुझे याद आती है 
आग 
जो पकाती है रोटी, 
सुलगाती है बोरसी 
और 
अकेले होती है 
बुझ जाने के बाद 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविताएं पढ़ते हुए अच्छा लग रहा है अरुण जी ।
    इस कविता में आप शायद भूलवश पकाता सुलगाता लिख गए हैं ।

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  2. गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  3. बहुत खूब ... बुझ जाने के बाद तो सब कुछ अकेले ही हो जाता है ...

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